Saturday 30 July 2016

आध्यात्मिक शिखर पुरुष राष्ट्र गौरव आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज पर केन्द्रित पुस्तक का होगा प्रकाशन

आध्यात्मिक शिखर पुरुष राष्ट्र गौरव आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज के आदर्श एवं

चतुर्थकालीन मुनिचर्या पर आधारित आध्यात्मिक दिशा दर्शन को समाहित किए हुए एक भव्य पुस्तक


जयपुर। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के ध्वजवाहक पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के महान् जीवन चरित्र पर केन्द्रित भव्य चित्रों को संजोते हुए धार्मिक ग्रन्थ का प्रकाशन करने का निर्णय यहाँ लोकप्रिय हिंदी समाचार पत्र "गठजोड़ प्रकाशन" ने लिया है।

सोशल मीडिया के क्षेत्र में कार्यक्रमों के प्रसारण में अभूतपूर्व नेटवर्क हासिल कर चुके "गठजोड़ परिवार" द्वारा यह प्रकाशन किया जावेगा। राजस्थान राज्य अधिकारी कर्मचारी संयुक्त महासंघ एवं राज्य कर्मचारी संघ (युवा) का नेतृत्व करते हुए "जल ही जीवन है - जल बचाओ महाअभियान", "शुद्ध जल, शुद्ध पर्यावरण एवं सुरक्षित वातावरण हो पहला मानवाधिकार" "मतदाता जागरूकता अभियान" जैसे अन्य कई लोकप्रिय अभियानों के सफल नेतृत्वकर्ता संचालक रह चुके ज्योतिर्विद् महावीर कुमार सोनी जो "सरकारी तंत्र" पत्रिका के प्रकाशक एवं प्रधान संपादक भी हैं, इसके प्रकाशन की कमान संभालेंगे। इस प्रकाशन का एक मुख्य उद्देश्य यह भी होगा कि पंचम काल जैसी विषम परिस्थितियों में आज भी चतुर्थ काल जैसी मुनि चर्या का पालन करना सम्भव है, जिसका सही एवं साक्षात दर्शन किया जा सकता है परम पूज्य आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज ससंघ के दर्शन लाभ करके, जिनको कलयुग के महावीर कहें तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी, जो कि इस परम मुनि धर्म को आगम निर्देशित रूप में ही आगे बढ़ाने के सर्वत्र प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं।

इस प्रकाशन को अति भव्य बनाने के लिए सभी लोगों से, प्रमुख रूप से आचार्य श्री को नजदीकी से जानने वाले विद्वान लोगों, संतों, धार्मिक संस्थाओं आदि से लेख, संस्मरण, सन्देश, चित्र आदि प्रकाशनार्थ आमन्त्रित किए जावेंगे।

उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक के संपादक ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद् महावीर कुमार सोनी प्रथम पट्टाचार्य आचार्य श्री 108 वीर सागर जी महाराज की प्रथम दीक्षित आर्यिका 105 श्री वीरमती माताजी के गृहस्थ अवस्था के भतीजे हैं, बचपन में माताजी के द्वारा धार्मिक संस्कारों को दृढ़ किए हुए धर्म परायण व्यक्ति हैं, गणिनी आर्यिका श्री 105 सुपार्श्वमती माताजी के मंगल आशीर्वाद से उनके मंगल सानिध्य में ज्योतिष शिरोमणि के रूप में सम्मानित ज्योतिष शास्त्र के धनी लोकप्रिय ज्योतिर्विद् भी हैं।

विद्वजनों से निवेदन

विद्वजनों से विनम्र अनुरोध है कि कृपया उक्त सन्दर्भ में पूज्य आचार्य भगवन श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज पर अपने आलेख, संस्मरण, सन्देश, फोटोज, अमूल्य सुझाव आदि निम्न पते पते पर या हमारी नीचे अंकित ई-मेल आई.डी. पर भिजवाने की कृपा करें।

gathjodnews@gmail.com
mahavirkrsoni@gmail.com

Monday 21 December 2015

श्री महावीर वंदना रथावत्त॓न जिन धम॓ प्रभावना यात्रा

संत शिरोमणिआचार्यश्री 108 विद्या सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज, मुनि श्री विराट सागर जी महाराज ससंघ मंगलवार, 22 दिसम्बर, 2015 को दोपहर 1.30 बजे कीति॓ नगर जैन मंदिर से चौकडी मोदीखाना के नाटाणियो का रास्ता स्थित श्री पाश्र्व॓नाथ भवन के लिए मंगल विहार करेंगे.
मुनि द्वय की आहार चया॓ बुधवार, 23 दिसम्बर, 2015 को प्रातः 9 बजे पार्श्वनाथ भवन में होगी.
मुनि द्वय के सानिध्य में बुधवार, 23 दिसम्बर, 2015 को प्रातः 10 बजे से रामलीला मैदान में विशाल धम॓ सभा होगी.
प्रातः 11 बजे मुनि द्वय के सानिध्य में रामलीला मैदान से देव-शास्त्र-गुरू के साथ जैन धम॓ के इतिहास में पहली बार 140 कि. मी. माग॓ की श्री महावीर वन्दना - रथावत्त॓न धम॓ प्रभावना यात्रा का श्री महावीरजी के लिए शुभारम्भ होगा.
कृपया इस यात्रा में सपरिवार शामिल होकर पुण्याज॓न करे.
यात्रा मे उचित व्यवस्था के लिए मो.नं.09066024201
पर मिस कॉल देकर अपना रजिस्ट्रेशन करवावे.
रथ यात्रा रवानगी के मौके पर आप सभी सपरिवार सादर आमंत्रित है.
निवेदक
राजेन्द्र के. गोधा मुख्य समन्वयक
गणेश कुमार राणा अध्यक्ष
कुशल ठोलिया काया॓ध्यक्ष
कमल बाबू जैन महामंत्री
सुभाष चन्द जैन मुख्य संयोजक
मनीष चौधरी संयोजक
विनोद जैन कोटखावदा समन्वयक व मीडिया प्रभारी
एवं समस्त पदाधिकारी
मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज चातुर्मास समिति, जयपुर

Sunday 18 October 2015

समाचारों के ऑन लाइन प्रसारण में बड़े नेटवर्क के रूप में उपलब्धि हासिल की,🌷🌺मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज गठजोड़ को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए🌷






जयपुर। परमपूज्य मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में यहाँ "जैन साधु संत" का शुभारम्भ हुआ। ज्योतिर्विद महावीर सोनी को मुनि श्री ने इसके लिए अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। इससे पूर्व मुनि श्री को उनके आशीर्वाद उपरांत प्रदेश के शासन सचिवालय में अधिकारी कर्मचारी संगठनो के बीच वन, पर्यावरण एवं खनिज राज्य मंत्री जी के कर कमलों द्वारा "sachivalyareporter.com" लांच होने के बारे में बताते हुए अति शीघ्र एक और वेबसाइट "GathjodIndia.com" लांच किए जाने तथा किस प्रकार की तकनीकियों द्वारा फेस बुक, गूगल, वेबसाइटस, पेज एवं जैन साधु संत, जैन बुलेटिन, मिनी साइट्स आदि के रूप में उन्होंने अपना एक बड़ा नेटवर्क बना लिया है, जिसके माध्यम से उनके द्वारा साधु संतों के प्राप्त प्रवचनों, समाचारों, विज्ञप्तियों आदि का थोड़ी सी कड़ी मेहनत द्वारा अत्यंत मितव्ययी रूप से लाखों लोगों के बीच ऑन लाइन प्रसारण सम्भव किया जा सकता है, के बारे में विस्तार से बताया। मुनि श्री को धार्मिक एवं सामाजिक हित के किए गए विभिन्न प्रयासों के बारे में अवगत कराते हुए लेपटोप पर साक्षात अवलोकन भी कराया गया। मुनि श्री ने गठजोड़ द्वारा समाज हित में निरन्तर किए जा रहे विभिन्न प्रयासों पर अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आशीर्वाद प्रदान किया। 
🙏🌷 वेबसाइट के शुभारम्भ के अवसर पर मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए प.पु. मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज - झलकियाँ 





🌷

"आर्यिका दीक्षा दिवस समारोह''


Saturday 3 October 2015

251 तपस्वियों का हुआ सम्मान


251 RkIkfLOk¸k¨a dk gqvk LkEEkkUk
EkqfUkJh izek.k lkxj d¢ LkkfUUk/¸k Eksa gqvk Ikkj.kk
Tk¸kIkqj & LkaRk f'kj¨Ekf.k vkPkk¸kZ Jh 108 fOk|kLkkXkj Tkh EkgkjkTk d¢ IkjEk IkzHkkOkd f'k"¸k Ok Xkq.kk¸kRkUk RkhFkZ Ikz.¨Rkk EkqfUkJh 108 IkzEkk.k LkkXkj Tkh EkgkjkTk d¢ LkkfUUk/¸k Eksa Lk¨EkOkkj d¨ Lk¨Ykg dkj.k] n'kYk{k.k IkOkZ Ok RksYkk djUks OkkYks RkIkfLOk¸k¨a dk LkEEkkUk HkV~Vkjd Tkh dh UkfLk¸kka Eksa fd¸kk Xk¸kkA
       lfefr ds eq[; leUo;d jktsUnz ds0xks/kk o v/;{k x.ks'k jk.kk us crk;k fd Lk¨Ykg dkj.k d¢ 32 fnUk dk mIkOkkLk djUks OkkYkh JhEkRkh IknEkk TkSUk Ok JhEkRkh fOkEkYkk TkSUk] fOkUkhRkk TkSUk IkkIkM+hOkkYk dk] Lk¨Ykg fnUk d¢ mIkOkkLk djUks OkkYks JhEkRkh IkzHkk nsOkh IkgkfM+¸kk] jRkUk YkkYk nXkM+k] jkd¢'k IkgkfM+¸kk] nLk fnUk d¢ mIkOkkLk djUks OkkYks JhEkRkh jsUkw dkYkk] dSYkk'k Pkan TkSUk] nhIksUnz TkSUk] nsOksUnz dqEkkj TkSUk] JhEkRkh LkfjRkk TkSUk] vfEkRk dqEkkj TkSUk] YkfYkRk TkSUk] YkfYkRk dqEkkj TkSUk vTkEksjk] JhEkRkh Lkq/kk TkSUk] v'k¨d TkSUk vkCkwTkh OkkYks] vfUkYk TkSUk] IkzOkh.k dqEkkj TkSUk] vfUkYk dqEkkj TkSUk] JhEkRkh fOkEkYkk TkSUk] JhEkRkh vaTkw Xk¨/kk] JhEkRkh Lkq/kk TkSUk] JhEkRkh jkTk vTkEksjk] JhEkRkh dkaRkk dkLkYkhOkkYk] vfTkRk dqEkkj TkSUk] LkaTk¸k Xk¨/kk] JhEkRkh bafnjk TkSUk] JhEkRkh IknEk IkkVUkh] v'k¨d dqEkkj TkSUk] Ikz'kkaRk TkSUk] v'k¨d dqEkkj TkSUk] MkW- 'k¨Hkk TkSUk] MkW- jkTksUnz dqEkkj TkSUk] v'k¨d dqEkkj TkSUk OkkYk¨a d¨ o iapes: ds ikWp fnu] vkB fnu dk miokl djus okys R;kxh ozfr;ks rFkk jRUk=¸k d¢ RkhUk fnUk dk mIkOkkLk djUks OkkYks fnO;k tSu dksV[kkonk]vafdr lksuh ckMk ineiqjk]'kqHke tSu cksyh]'kqHkkaxh tSu lksuh lfgr 251 JkOkd&JkfOkdkv¨a d¨ PkkRkqEkkZLk O¸kOkLFkk LkfEkfRk d¢ Ekq[¸k LkEkUOk¸kd jkTksUnz d¢- Xk¨/kk] JkOkd LkaLdkj f'kfOkj d¢ Ikq.¸kkTkZd Xk.¨'k jk.kk] Lka¸kksTkd dq'kYk B¨fYk¸kk] LOkkXkRkk/¸k{k nhUkn¸kkYk IkkVUkh] dEkYk CkkCkw TkSUk LkqHkk"k pUn TkSUk]jkds'k usdsokyk] fouksn tSu dksV[kkonk]iznhi tSu]lquhy cD'kh] 'khyk MksM;k]js.kw jk.kk]e/kq Bksfy;k]'kdqUryk ik.M;k vkfn Uks fryd]ekY;ki.kZ]izrhd fpUg nsdj lEeku fd¸kkA bLk Ek©d¢ Ikj JkOkd LkaLdkj f'kfOkj Ok n'kYk{k.k IkOkZ Eksa fOkfHkUUk O¸kOkLFkkv¨a d¨ ns[kUks OkkYks dk¸kZdRkkZv¨a Uks EkqfUkJh d¨ JhQYk Pk<kdj vk'khOkkZn fYk¸kk

जगत पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज का 33वा दीक्षा दिवस विशेष



मुनिपुंगव श्री 108 सुधासागर जी
मुनिपुंगव श्री सुधासागर : जीवन परिचय
भारतीय वसुन्धरा पर समय-समय पर अनेक महापुरषों ने जन्म लिया और अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से जन-जन को प्रभावित किया। ऐसे ही एक महापुरुष हैं परम पूज्य संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य परम पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज जिन्हें परम जिनधर्म प्रभावक, प्राचीनतीर्थ जीर्णोद्धारक, वास्तुविद्, सिद्धवाक्, मिथ्यात्वभंजक, नवतीर्थ प्रतिष्ठापक, अध्यात्मवेत्ता, जैन धर्म-दर्शन-साहित्य-संस्कृति संरक्षक, विद्वदगुणानुरागी, इतिहास निर्माता, श्रावक संस्कार शिविर प्रवर्तक, शिक्षानुरागी, परम वात्सल्य के धनी आदि अनेक उपाधियों से अभिमंडित कर श्रमण-श्रावक समाज ने उनके प्रति जहाँ अपना बहुमान प्रकट किया है वहीं उनके कार्यों के प्रति कृतज्ञता भी व्यक्त है। उनकी साधना श्रमण संस्कृति से समन्वित है, उर्ध्वगामी है, उत्कृष्टता से युक्त है। उनमें अपने गुरु एवं परम्परा के प्रति अगाध श्रद्धा है। यही विशेषता उनके गुणों को अप्रितम बनाती है, स्मरणीय बनाती है । यही कारण है कि आज जैनाजैन समाज उनके प्रति नतमस्तक है ।
जन्मभूमि एवं माता-पिता
मुनिपुंगवश्री सुधासागर जी महाराज का जन्म स्थान जिला-सागर (म.प्र.) स्थित ग्राम – ईशुरवारा है; जहाँ आपने श्रावक श्रेष्ठी श्री रूपचन्द्र जैन के घर उनकी सहधर्मिणी श्रीमति शान्तिबाई जैन की कुक्षि से श्रवण शुक्ल सप्तमी (मोक्षसप्तमी), संवत् 2015 तदनुसार दि. 21 अगस्त 1958, दिन गुरूवार को जन्म लिया। आपका नाम ‘जयकुमार’ रखा गया। मुझे ऐसा प्रतीत होता है की जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की तरह आत्मविजय के पथ पर चलें और अपने ‘जय’ नाम को सार्थक करें। आज यह प्रतीति सत्य प्रतीत होती दिखाई दे रही है ।
आपके दो भ्राता हैं – जयेष्ठ श्री ऋषभकुमार जैन, कनिष्ठ श्री ज्ञानचंद्र जैन तथा दो बहिनें – निरंजना और कंचनमाला हैं । सभी सुखी गार्हस्थिक जीवनयापन कर रहे हैं तथा धर्म के प्रति अनन्य आस्थावान हैं । इस प्रकार संपन्न परिवार में रहते हुए आपने प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर ईशुरवारा से प्राप्त कर उच्च शिक्षा हेतु म.प्र. के प्रसिद्ध डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर को चुना और वहाँ बी.कॉम. उपाधि हेतु अध्ययन किया। कौन जानता था की जो आज वाणिज्य उपाधि के लिए जद्दोजहद कर रहा है वही व्यक्ति एक दिन संसार के सब वणिज व्यापारों से अपने आपको मुक्त कर मुक्ति की राह को वरण करेगा, जहाँ न कोई उपाधि रखी जाती है और न कोई उपधि। उनकी यह विशेषता आज भी है की जब भी कोई व्यक्ति, विद्वान या समाज उन्हें कोई उपाधि देता है तो वे सहज ही कहते है की मुझे तो एक मात्र हमारे गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा प्रदत्त मुनि उपाधि ही पर्याप्त है मैं इसी के आचरण में प्रसन्न हू और मेरी साधना के लिए यही पर्याप्त है। वे कृत, कारित, अनुमोदना से भी उपाधियो से बचे रहते है।
श्री जयकुमार ने माता-पिता एवं परिजनों के प्रेम, आग्रह एवं दबाब को अस्वीकार करते हुए विवाह नहीं किया और अजीवन ब्रम्हचर्यपूर्वक रहने का संकल्प लिया। उनकी माँ ने उन्हें ब्रम्हचर्य व्रती रहने की स्वीकृति दी और कहा-“बेटा, सोनागिरी सिद्ध क्षेत्र पर स्वीकृति दे रही हूँ । जैसे यहाँ से अनेक मुनि मोक्ष गए, वैसा मोका तुम्हे भी मिले।” माँ के आशीर्वाद से प्रसन्न जयकुमार ने कहा- “निश्चित रहना माँ, साधना में बाधा नहीं आयेगी। न ही व्रत में दोष लगने दूँगा तुम्हारे जैसे माँ का दूध लजाऊंगा नहीं।”
संस्थापक एवं संचालक
श्री जयकुमार ने जैनधर्म एवं समाज सेवा का संकल्प लिया और तदनुरूप कार्य करते हुए-
(1) श्री दिगम्बर जैन पाठशाला (रात्रिकालीन), ईशुरवारा (सागर)
(2) श्री शांतिनाथ वाचनालय, ईशुरवारा (सागर, म.प्र.) की स्थापना की।
प्रवृत्ति
आपकी प्रवृत्ति जिज्ञासु, जुझारू, कर्त्तव्य परायण एवं सेवाभाव की रही। फलस्वरूप आप अपने ग्राम श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र इशुरवारा आने वाले साधुजनों कि समुचित सेवा/वैयावृत्ति करते और उनके प्रवास एवं विहार कि व्यवस्था करते। ऐसा करते हुए आपको अत्यंत आनंद कि अनुभूति होती। वे मानते थे कि वैयावृत्ति को तप के अन्दर समाहित किया गया है। यह दान भी है। बिना साधुजनों की वैयावृत्ति के निरोग शरीर एवं ताप के फल की प्राप्ति नहीं होती।
आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के प्रथम दर्शन
आपने प्रथम बार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन सन 1977 में श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर (म.प्र.) में किये और दर्शन क्या किये; उन्ही को निहारते हुए मन ही मन उन्ही के पथ का अनुगामी बनने का संकल्प ले लिया। यह संकल्प उनकी संगती पाकर और बलबन हुआ; जिसे हम सब आज प्रत्यक्ष देख रहे है।
ब्रम्हचर्य व्रत
आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र नैनागिर जी में दिनांक 19 अक्टूबर 1978 को ब्रम्हचर्य व्रत ग्रहण किया। “ते गुरु में उर बसों, तारण तरण जिहाज की भावना भरकर सच्चे गुरु के प्रति समर्पण का संकल्प लिया। आज भी यह संकल्प पूरी आस्था, निष्ठा के साथ विधमान है। ब्रम्हचर्य का तेज उनमे देखा जा सकता है।
ब्रम्हचर्य व्रत की साधना करते हुए ब्र. जयकुमार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शनार्थ दि. 8 जनवरी, 1980 को नैनागिर पहुचे और उनसे निवेदन किया कि “भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र की वन्दना करने के लिए जाना चाहता हूँ, आपका सुभाशीर्वाद चाहिये;” तो आचार्य श्री मुस्कुरा दिए और बोले “क्या स्वयं तीर्थ बनने के साधना का मानस है? तुम स्वयं भी तीर्थ बन सकते हो। यदि मैं तुम्हे ही तीर्थ बना दू तो ? ” ब्र. जयकुमार को यही तो चाहिये था, उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का विचार निरस्त किया और स्वयं तीर्थ बनने के लिए आचार्यश्री को श्रीफल समर्पित कर दिया। उनका जीवन संतमय तो दो वर्ष पूर्व से ही था। अब तो वंदनमुक्ति प्रत्यक्ष दिख रही थी।
क्षुल्लक दीक्षा
दिनांक 10 जनवरी सन1980 को नैनागिर मैं संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की और नाम पाया- क्षुल्लक श्री परमसागर। इस तरह एक नया जन्म हुआ। नया संकल्प कि आत्महित सर्वोपरि है। क्षुल्लक अवस्था में मुक्तागिरी तीर्थ पर आपको लगातार 12 दिन तक अन्तराय हुए, 13 वे दिन आहार संपन्न हो सका किन्तु आप अपनी साधना से डिगे नहीं अपितु आत्मविजय की और अग्रसर रहे।
ऐलक दीक्षा
दि. 15 अप्रेल सन 1982 को सागर (म.प्र.) में भगवान महावीर जयंती के पावन दिन ऐलक दीक्षा संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से ग्रहण की। नाम पूर्ववत ही रहा ऐलक श्री परमसागर जी महाराज। ऐलक अवस्था मैं आपने तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी की नौ वन्दना की।
मुनि दीक्षा
आश्विन कृष्ण तृतीया तदनुसार दिनांक 25 सितम्बर सन 1983 को इसरी को (जिला-गिरिडीह, बिहार) में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से परम जैनेश्वरी मुनि दीक्षा ग्रहण की और नाम पाया मुनि श्री 108 सुधासागर। उस समय उनकी अवस्था मात्र २५ वर्ष कि थी। मुनि बनने के बाद आपका प्रथम आहार श्रावक श्रेष्ठी श्री कल्याणमल झांसरी (कलकत्ता) वालो के चौके में हुआ। आपने आहार में सभी रसो का त्याग कर मात्र लोकी कि सब्जी और बिना नमक कि रोटी ग्रहण की। सर्दी के दिनों में भी चटाई का उपयोग नहीं किया। धन्य है ऐसे महाव्रती, परीषह जयी मुनि सुधासागर। तभी तो आपको आज सभी ‘मुनिपुंगव’ मानते है। अब जीवन में धर्म-सुधा का प्रवाह अनवरत प्रवाहमान है।
प्रवचन साहित्य
यद्यपी मुनि बनने के पश्चात प्रतिदिन शास्त्र स्वाध्याय करना आपका नियम है और आवश्यक तो है ही। और वे अपने आवश्यको में कभी हानि नहीं करते। उनका प्रायः लेखन कि ओर ध्यान नहीं जाता किन्तु जिस निष्ठा एवं समर्पण के साथ आप प्रवचन करते है वह पूरी तरह आगम और अध्यात्म तथा परम्परा एवं व्यवहार कि कसौटी पर खरा होता है अत: आपके प्रवचन ही कृति रूप में सामने आते है। इस तरह से आपके मुखारविन्द से नि:सृत कृतिया इस प्रकार है-
(1) चित चमत्कार (सम्पादक- कु. कल्पना जैन)
(2) कड़वा मीठा सच
(3) चरणं पणमामि विसुध्तरं
(4) आध्त्यामिक पनघट (सम्पादक- ऐलक श्री निशंकसागर जी)
(5) अधो सोपान
(6) तीर्थ प्रवर्तक (सम्पादक- डॉ रमेशचन्द जैन)
(7) दृष्टि में सृष्टि
(8) नग्नत्व क्यों और कैसे ? (सम्पादक- डॉ रमेशचन्द जैन)
(9) श्रुतदीप
(10) मुनि का मुखरित मौन (कविता संग्रह)
(11) जियें तो कैसे जियें?
(12) जीवन: एक चुनौती
(13) सम्यक्तावाचरण
(14) नियति की सीमा (सम्पादक- पं. विमलकुमार जैन)
(15) संस्कृति-संस्कार
(16) फूटी आँख विवेक की
(17) सुधा संदोहन
(18) वसुधा पर विद्यासागर
(19) नाव और नाविक (सम्पादक- पं. दरबारीलाल जैन)
(20) अमृत वाणी
(21) वास्तु कला का कीर्ति स्तंभ
(22) सुधा संग दोहन
(23) महापर्वराज
(24) जिन्दगी का सच
(25) दश-धर्म-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(26) वसुधा पर सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(27) अध्यात्म सुधा- मैं कौन हू? (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(28) श्रावक-सुधा (सम्पादक-डॉ अशोककुमार जैन)
(29) धर्म दया जुत सारो (दया-सुधा)-सम्प
ादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन
(30) अहिंसा-सुधा (चर्म निर्मित वास्तु त्याग की प्रशस्त प्रेरणा)- डॉ. सुरेन्द्र जैन
(31) धर्म प्रीति-सुधा(सम्पादक- डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन)
(32) जिन संस्कृति-सुधा (सम्पादक- डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(33) संसार-सुधा (सम्पादक- डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन)
(34) आत्म-सुधा (सम्पादक- डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन)
(35) सिद्ध-सुधा (सम्पादक- डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(36) सिध्वी-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(37) पंच कल्याणक-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(38) स्वातंत्र्य-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(39) दिगम्बर-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(40) जीवन-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(41) कविता-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(42) आध्यात्मिक-सुधा (आध्यात्मिक पनघट)- सम्पादक-डॉ.सुरेन्द्रकुमार जैन
(43) सत्य-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(44) चित चमत्कार-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(45) विवेक-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(46) सम्क्यत्व-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(47) जिनसाधना-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(48) सुधा-सुभाषितम (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(49) सुविचार-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(50) संस्कार-विचार-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(51) मूलचार-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(52) ललित-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(53) जबलपुर में सुधा-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(54) इन्द्रध्वज-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(55) कर्तव्य-सुधा (सम्पादक-डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन)
(56) सूर्य-सुधा (संकलनकर्ता-रवि जैन पत्रकार, गुना)
(57) जिनवाणी सुधासागर (भाग 1), सम्पादक-डॉ.सुरेन्द्रकुमार जैन
(58) जिनवाणी सुधासागर (भाग 2), सम्पादक-डॉ.सुरेन्द्रकुमार जैन
(59) जिनवाणी सुधासागर (भाग 3), सम्पादक-डॉ.सुरेन्द्रकुमार जैन
(60) जिनवाणी सुधासागर (भाग 4), सम्पादक-डॉ.सुरेन्द्रकुमार जैन
(61) जिनवाणी सुधासागर (भाग 5), सम्पादक-डॉ.सुरेन्द्रकुमार जैन
(62) जिनवाणी सुधासागर (भाग 6), सम्पादक-डॉ.सुरेन्द्रकुमार जैन
शोध संगोष्ठियों के सम्प्रेरक
प.पू. मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज की प्रेरणा से उन्ही के सानिध्य में अब तक 16 शोध संगोष्ठिया संपन्न हो चुकी है जिनमे महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज की समस्त कृतियों, महाकवि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की समस्त कृतियों, आचार्यश्री जिनसेन कृत पद्म्चारित एवं श्रावकाचार संग्रह (भाग-1,2,3,4), आचार्यशिवार्य कृत भगवती आराधना, आचार्य वट्टकेर कृत ‘मूलचार’, आचार्य पूज्यपाद कृत ‘ सर्वार्थसिद्धि’, आचार्य भट्ट अकलंकदेव विचरित ‘तत्वार्थवार्तिक’, आचार्यश्री विद्यानन्दकृत ‘तत्वार्थश्लोकव
ार्तिकालंकार’, आचार्यश्री कुन्दकुन्द कृत ‘अष्टपाहुड’ पर उच्च स्तरीय अनुशीलनात्मक राष्ट्रीय शोध संगोष्ठिया हुई है तथा इन संगोष्ठिया में पठित आलेखों का ग्रंथाकार प्रकाशन भी हुआ है।
प्रेरणा से हुए प्रकाशन (शोध संगोष्ठी-ग्रन्थ)
(1) सल्लेखना दर्शन
(2) आचार्य ज्ञानसागर कि साहित्य साधनाएवं सांगानेर जिनबिम्ब दर्शन
(3) कीर्ति स्तम्भ
(4) लघुत्रयी मंथन
(5) अध्यात्म संदोहन
(6) जयोदय महाकाव्य परिशीलन
(7) आचार्यश्री विद्यासागर ग्रंथावली परिशीलन
(8) आदि पुराण परिशीलन
(9) हरिवंशपुराण परिशीलन
(10) पद्मपुराण परिशीलन
(11) श्रावकाचार (संग्रह) परिशीलन
(12) भगवती आराधना परिशीलन
(13) मूलचार परिशीलन
(14) तत्वार्थश्लोकवार्तिक परिशीलन
अन्य- त्रिशताधिक शोधपरक एवं धर्म, समाज सम्बन्धी कृतियों का प्रकाशन हुआ।
मुनिश्री पर लिखित साहित्य
(1) सुधा साहित्य समीक्षा – डॉ रमेशचन्द जैन
(2) मुनिश्री सुधासागर – व्यक्तित्व और कृतित्व
(3) मुनि सुधासागर : व्यक्तित्व और सर्जन – डॉ दीपक कुमार जैन
(4) संस्कृति प्रहरी – परम सुधासागर (काव्य जीवनी ) – पं. लालचंद जैन ‘राकेश’
(5) सुधा का सागर (जीवनी) – सुरेश सरल
(6) मुनिपुंगव श्री सुधासागर विशेषांक ( पार्श्व-ज्योति मासिक, सितम्बर, 05)
(7) मुनिपुंगव श्री सुधासागर विशेषांक ( कुंदकुंद वाणी )
(8) मुनिपुंगव श्री सुधासागर विशेषांक ( पार्श्व-ज्योति मासिक, सितम्बर, 06)
(9) मुनिपुंगव श्री सुधासागर विशेषांक ( पार्श्व-ज्योति मासिक, अक्टूबर, 07)
(10) मुनिपुंगव श्री सुधासागर विशेषांक ( निमाड़ सिटिजन साप्ताहिक, सनावद दि. 21-27 नवम्बर, 2010)
(11) मुनिपुंगव श्री सुधासागर दीक्षा दिवस विशेषांक ( पार्श्व-ज्योति मासिक, अक्टूबर, 2012)
(12) मुनिपुंगव श्री सुधासागर : व्यक्तित्व, विचार और प्रभाव (भाग -1,2,3) – लेखक व सम्पादक – डॉ. रमेशचन्द जैन, डी.लिट्.
प्रेरणा से संस्थापित एवं संचालित विशेषकार्य
(1)दिगम्बर जैन सुधासागर कन्या इन्टर कॉलेज, ललितपुर (उत्तरप्रदेश)
(2) आचार्य श्री ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केंद्र, ब्यावर
(3) श्री दिगम्बर जैन ऋषभदेव ग्रंथमाला, सांगानेर – जयपुर (राजस्थान)
(4) श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर की स्थापना (राजस्थान)
(5) ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र, नारेली (अजमेर, राजस्थान)
(6) खरगोश शाला, नारेली (अजमेर, राजस्थान)
(7) मुनिश्री सुधासागर शोध ग्रंथालय, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश)
(8) जिला – सीकर (राजस्थान) के सम्पूर्ण विकलांगों को कृत्रिम अंग प्रदान करवाने कि शासन को प्रेरणा, तदनुसार शत – प्रतिशत कार्य
(9) आचार्य श्री विद्यासागर जैन छात्रावास, कोटा (राजस्थान)
(10) शताधिक गौशालाओं कि स्थापना
(11) वृद्धाश्रम, सांगानेर (जयपुर, राजस्थान)
(12) ज्ञानोदय वृद्धाश्रम, नारेली (अजमेर, राजस्थान)
(13) दिगम्बर जैन पब्लिक स्कूल, बिजोलियां
(14) दिगम्बर जैन पब्लिक स्कूल, आभां
(15) दिगम्बर जैन पब्लिक स्कूल, टोंक
(16) पब्लिक स्कूल, बिजोलियां
(17) सुधासागर पब्लिक स्कूल, टोंक
तीर्थ जिर्णोद्धार एवं नवतीर्थ संरचना
(1) श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, देवगढ़ (ललितपुर, उत्तरप्रदेश )
(2) श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन पुण्योदय अतिशय क्षेत्र जैनागढ़ (बजरंगढ़, जिला गुना, मध्यप्रदेश)
(3) श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, खंदारगिरि (जिला अशोकनगर, मध्यप्रदेश)
(4) श्री दिगम्बर जैन क्षेत्रपाल नसियां जी, महरौनी (ललितपुर, उत्तरप्रदेश)
(5) श्री दिगम्बर जैन मंदिर संघीजी, सांगानेर (जयपुर, राजस्थान )
(6) श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, रैवासा (सीकर, राजस्थान)
(7) श्री दिगंबर जैन मंदिर, बैनाड़ (जयपुर, राजस्थान)
(8) श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चाँदखेड़ी (झालावाड़, राजस्थान)
(9) श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, बिजोलिया (भीलवाड़ा, राजस्थान)
(10) श्री दिगम्बर जैन सुदर्शनोदय तीर्थक्षेत्र, आवां (टोंक, राजस्थान)
(11) श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, ध्यानडूंगरी (भिंडर, राजस्थान)
(12) श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन नसियां जी, टोंक (राजस्थान)
(13) श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, गोलाकोट (मध्यप्रदेश)
(14) श्री मुनिसुव्रतनाथ मंगलोदय दिगम्बर जैन तीर्थ, रुठियाई ( जिला गुना, मध्यप्रदेश )
(15) श्री दिगम्बर जैन मंदिर, धरनावदा (जिला गुना, मध्यप्रदेश)
(16) श्री दिगम्बर जैन मंदिर, साडा कालोनी, राघौगढ़ (जिला गुना, मध्यप्रदेश)
(17) श्री सम्भवनाथ जिनालय, सुधासागर धाम, राघौगढ़ (जिला गुना, मध्यप्रदेश)
(18) श्री दिगम्बर जैन शुभोदय अतिशय क्षेत्र, बीनागंज ( जिला गुना, मध्यप्रदेश)
श्रावक संस्कार शिविर
जो स्वयं को मुनि बनने के योग्य अपने लिए नहीं पाते है वे श्रावकत्व को अंगीकार करें ; यह प्रयास मुनिश्री का रहता है इसलिए वे प्रतिवर्ष श्रावक संस्कार शिविर आयोजित करने कि प्रेरणा देते है। इसके मूल में मर्यादित आचरण प्रमुख होता है। आहार-विहार मर्यादा, आचार-विचार कि मर्यादा, दान और धर्म कि मर्यादा, त्याग और भोग की मर्यादा; सबका ध्यान रखना जरूरी है। यह सभी मर्यादायें हमें श्रावक संस्कार शिविर में मुनिश्री के सानिध्य में देखने को मिलती है। वास्तव में यह मर्यादा बोध कि दस दिवसीय पाठशाला है जिसमें प्रवेश लेकर गृहस्थजन श्रावक बनते है।
बालक, युवा और वृद्धों में श्रावक संस्कार जागृत कराने के उद्देश्य से मुनिश्री की अभिनव प्रेरणा श्रावक संस्कार शिविरों कि रही; जिसके प्रतिफल स्वरुप हजारों लोगों का जीवन व्यसनमुक्त एवं धर्ममय हो गया है। ललितपुर, अजमेर, मदनगढ़-किशनगढ़, जयपुर, नारेली, सीकर, अलवर, कोटा, बिजौलियां, केकड़ी, सूरत, भिंडर, उदयपुर, खान्दू कॉलोनी –बांसवाड़ा, नारेली, चमत्कार जी, टोंक, जबलपुर, गुना, कोटा आदि स्थलों पर वर्ष 2014 तक 23 श्रावक संस्कार शिविर आयोजित हो चुके हैं। इन श्रावक संस्कार शिविरों में उपस्थित जन समूह ने जिस तरह आजीवन व्यसनों का त्याग किया है वह अनुकरणीय है। परम पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज द्वारा सन 1991 में प्रारंभ किये गए इस समाज संरचना अभियान को अनेक संतों ने अपना लिया है फलस्वरूप प्रतिवर्ष पर्यूषण पर्व में अनेक स्थानों पर श्रावक संस्कार शिविर आयोजित किये जाने लगे है।
मानव प्रतिष्ठा के कार्य
मनुष्य एवं समाज को धर्म युक्त एवं व्यसन मुक्त बनाने की दिशा में मुनिश्री ने उन विकृतियों पर विराम लगाने के लिए प्रेरित किया जो मनुष्य को पतन की ओर ले जाती है या समाज को विसंवाद का कारण बनती है। इसी कड़ी में मध, मांस, मधु, जमीकंद, रात्रि भोजन एवं मृत्यु भोज का त्याग, गर्भपात एवं कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध जनजागरण, धर्म तीर्थो एवं धर्मशालाओ की पवित्रता बनाये रखने हेतु जैनोचित क्रियायो के लिए उपयोग, रात्रि में जिनाभिषेक एवं पूजन का निषेद आदि कार्य प्रमुख है। जिनके यथेष्ट प्रतिफल भी दिखाई देने लगे है।
चातुर्मास
1980 – सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरी
1981 – सिद्धक्षेत्र नैनागिरि
1982 – सिद्धक्षेत्र नैनागिरि
1983 – ईसरी
1984 – जबलपुर (मढिया जी)
1985 – सिद्धक्षेत्र आहारजी
1986 – बंडा (सागर)
1987 – अतिशय क्षेत्र थूबौन जी
1988 – मुंगावली (जिला गुना) म.प्र.
1989 – अशोकनगर (जिला गुना)म.प्र.
1990 – सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरी
1991 – ललितपुर (उ.प्र.)
1992 – अशोकनगर
1993 – ललितपुर (उ.प्र.)
1994 – अजमेर (राज.)
1995 – मदनगंज – किशनगढ़ (राज.)
1996 – जयपुर (अजमेर-राज.)
1997 – ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र, नारेली (अजमेर-राज.)
1998 – सीकर (राज.)
1999 – अलवर (राज.)
2000 – ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र, नारेली (अजमेर-राज.)
2001 – कोटा (राज.)
2002 – बिजौलिया (राज.)
2003 – केकड़ी (अजमेर-राज.)
2004 – सूरत (गुजरात)
2005 – भिण्डर (राज.)
2006 – उदयपुर (राज.)
2007 – बांसवाड़ा (राज.)
2008 – ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र, नारेली (अजमेर, राज.)
2009 – श्री दिगम्बर अतिशय तीर्थ क्षेत्र, चमत्कार जी – आलनपुर (सवाईमाधोपुर)
2010 – श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन नसियां, टोंक (राज.)
2011 – श्री पार्श्वनाथ दि. जैन मंदिर, लार्डगंज, जबलपुर
2012 – श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र क्षेत्रपाल जी, ललितपुर (उ.प्र.)
2013 – गुना (मध्यप्रदेश)
2014 – श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, नसियां जी, कोटा (राज.)
2015 भीलवाड़ा (राज.)
पंचकल्याणक प्रतिष्ठाये एवं गजरथ
40 से अधिक स्थानों पर श्री मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में प्रेरक सानिध्य प्रदान किया। अनेक स्थानों पर आपके ही सानिध्य में गजरथ समारोह आयोजित किये गये; जिनमे देवगढ तीर्थक्षेत्र पर सन 1991 में पंच गजरथ, अशोकनगर (गुना) म.प्र. में सन- 1992 में सप्त गजरथ तथा सन 1993 में ललितपुर (उ.प्र.) में आयोजित नव गजरथो का एकसाथ आयोजन विश्वकीर्तिमान है; जिसके लिए सम्पूर्ण समाज मुनिश्री के प्रति हार्दिक कृतज्ञता का भाव रखता है। मुनिश्री के शुभाशीर्वाद हुये पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सवो में संस्कारित जिनबिम्ब अतिशय प्रभावकारी है और उनके चमत्कारों से अनेक लोग प्रभावित भी हुये।